युवा कवि कथाकार और संपादक अमित मनोज ने हरियाणा के कथा परिदृश्य में ज़रूरी हस्तक्षेप पैदा किया है। ग्रामीण जीवन उनकी कहानियों और कविताओं में कथ्य का रूप अख़्तियार करता है। बेशक वो ग्रामीण परिवेश से आते हैं और उनकी बहुत सारी कहानियों का कहानी कथन भी ग्रामीण है इसके बावजूद वो नए समाज और नए समय के यथार्थ और उसकी संकल्पना को गहराई से महसूस करते हैं। प्रतिवाद के स्वर उनकी जीवन शैली में हैं और उनकी कहानियों में भी। वो हमेशा प्रश्नाकुल रहते हैं। प्रश्नाकुलता उनका संभवतः स्थायी भाव है। उनकी कहानियों में वो जिज्ञासा के रूप में महसूस होता है। उनकी कहानियों को पढ़ना अपने नए विसंगत समय से न सिर्फ़ रू-ब-रू होना होता है बल्कि शब्दों के ताप को महसूस करना भी होता है। वो कहानी के लिए कोई कृत्रिम शिल्प नहीं गढ़ते बल्कि सहजता से कहानियां लिखते हैं। उन्होंने ‘रेत पथ’ के कुछ सशक्त विशेषांक - ‘कविता विशेषांक’ और ‘हिंदुस्तानी ग़ज़ल विशेषांक’ भी संपादित किए हैं जिनसे उनके उदार दृष्टिकोण को समझा जा सकता है। -- ज्ञानप्रकाश विवेक (वरिष्ठ कहानीकार-उपन्यासकार)
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