“कागज़ी ख़याल” ऐसे भाषा दूतों को साथ लेकर आया है जो हिंदुस्तानी ज़बान की रिवायत के साथ रहे हैं। ये सोचते और कहते हिंदुस्तानी भाषा में हैं इनमे अंश है ग़ालिब का ये बाबा दिनकर को जीते हैं ये रहीम और तुलसीदास को समझते हैं ये राम के साथ जंगल में भटकते हैं कर्ण की मजबूरी समझ्ते हैं ये समझते हैं सूरदास का दर्शन और मीरा का अनुराग भी।इस किताब के द्वारा लेखकों ने मोहब्बत जुदाई रिश्तों सामाजिक बुराइयों दुनिया और वक्त से जुड़े अपने अनुभव बयान किए हैं। इन्के लेखन में आपको फ़ासलों का दर्द मोहब्बत की बेकरारी उनके ज़ाती रिश्तों के हालात समाज से उनकी उम्मीदें दुनिया के लिए उनके सपने उनकी आज की वहशत और कल की चाहत सब तफ़्सील से मिलेंगे।
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