कहानी से संवाद शास्त्रीय आलोचना नहीं है। जैसाकि नाम से ही ज़ाहिर है यह कहानी के साथ चलते हुए उससे बतियाने और उसे समझने की एक रचनात्मक प्रक्रिया है। रश्मि रावत रचना को उसकी समग्रता में देखती हैं अपने समय और समाज के आलोड़न से उपजी एक जैविक इकाई के रूप में; जो उन मूल्यों को भी वहन करती है जिन्हें रचनाकार जान रहा होता है और उन चीजों को भी जो उसके अदेखे स्वयमेव रचना में आ जाती हैं और कई बार लेखक की सचेत अभिव्यक्तियों से ज्यादा कुछ बता जाती हैं—कहानी के ही बारे में नहीं लेखक के बारे में भी और उस सामाजिक-नैतिक पर्यावरण के बारे में भी जिसमें उस रचना ने आकार लिया। यह आलोचना की उस परिपाटी से आगे जाना है जो दी गई कसौटियों पर कहानी या किसी भी रचना को विश्लेषित करके अपने काम को पूरा मान लेती है। इस पुस्तक में शामिल कथा-समीक्षाएँ हर कहानी को पढ़ते हुए अपनी कुछ कसौटियाँ बनाती हैं; जिनकी जड़ें केवल साहित्य-चिन्तन में नहीं होतीं बल्कि समाज और उन मूल्यों से जुड़ी चिन्ताओं में होती हैं जिनकी खोज वे कहानी के घोषित उद्देश्यों के अलावा पात्रों की गठन लेखकीय भाषा की बुनावट और उसके शब्द-चयन तक में करती हैं। यही वह विशेषता है जिसके चलते ये समीक्षाएँ सिर्फ सम्बद्ध कहानियों की समीक्षाएँ नहीं रह जातीं बल्कि वृहत्तर पैमाने पर अपने समय समाज और संस्कृति की समीक्षा हो जाती हैं।
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