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About The Book
Description
Author
लेखक की ओर से-बस इतना ही कहना है... कि ग़ज़लों से थोड़ी मुहब्बत सारिका में दुष्यंत कुमार की गजलों को पढ़ते हुए हुई। अपनी पहली गजल इसी मुहब्बत की बदौलत काग़ज पर उतरी और बलिया से निकलने वाली पत्रिका रस सुलभ में शाया हुई। कि ठीक-ठीक ग़ज़ल कहना मुझे आता नहीं। कि मैं भी बहन हूं कविता कीथोड़ा मुझसे भी प्यार करो गजल जब यह कान में कहती है तो दिल यह कहता है कि सलीका मगर आता नहीं बंदिश भी कोई भाता नहीं। कि मंजर हमेशा कुछ नागवार हुआ करता है और यह कहता है कि हमें दर्ज करो जिस रूप में भी संभव हो। कि फिर भी कभी-कभी कहने को जी चाहता है। कि यह कभी-कभी ही कही गई काग़ज पर उतरती रही।--शैलेंद्र शांत