काका जी ने हास्य को अपने जीवन का मूलमंत्र बनाया और आजीवन इसी के प्रचार-प्रसार में जुटे रहे। अपने जीवनकाल में उन्होंने कितने उदास चेहरों की मुस्कानें बांटीं यह ठीक-ठीक बता पाना मुश्किल है। उनकी रचनाएं सचमुच फुलझड़ियां के समान हैं जो पढ़ने वालों के मन को हास्य के उजाले से भर जाती हैं।<br>इस पुस्तक में संगृहीत काका जी की हास्य-कविताएं कवि सम्मेलनों और काव्य-गोष्ठियों में हजारों-लाखों श्रोताओं को गुदगुदा चुकी हैं सन् 1965 में पहली बार प्रकाशित इस संकलन की ३ लाख से अधिक प्रतियां अब तक बिक चुकी हैं। आइए हिंदी के इस महान कवि के कृतित्व का आनंद उठाएं।<br>-डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल
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