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About The Book
Description
Author
कला-मन का अपना ही एक ललित स्वाद और संवाद है। राजेश कुमार व्यास कलाओं को लेकर एक खिड़की और आकाश एक साथ रचते हैं-खिड़की कलाओं को देखने-सुनने की और आकाश वह जहाँ कुछ रचनात्मक घटित हो रहा है जिसे देखने में हमें आनंद मिलता है। कलाएँ स्वयं अपने रचनाकारों के माध्यम से मानो कुछ नया खोजती रहती हैं और पुराने को सहेजती भी हैं जिसका नया होना होते रहना कभी समाप्त नहीं होता। व्यास के लेखन में इस तथ्य का इस बोध का कलाओं के मर्म का भान सदा बना रहता है। एक जगह वह लिखते हैं-कला क्]या है? आकार रंग अंतरिक्ष (स्पेस) का सम्मिलित सौंदर्य ही तो है !संगीत नृत्य-चित्र नाट्य को अपने में बसाते हम कला के समय में रूपांतरित हो जाते हैं। हम वह नहीं रहते जो पहले थे। कला के समय का इससे बड़ा सच और क्या हो सकता है ! कलाओं का अंतर्सबंध भी राजेश कुमार व्यास की इस रचना में लगातार ध्वनित होता है। कलाओं के बारे में लिखते हुए वह मानो पाठक को कलाओं के संसार में आने का निमंत्रण देते हैं। सुखद है कि व्यास नियमित ढंग से कलाओं पर लिखते हैं । उनको उत्सव- सा मानते हैं और उनमें विन्यस्त विचारों को रेखांकित करते हैं । निश्चय ही उनके लेखन से हिंदी में कला-लेखन समृद्ध हो रहा है। इसमें भला क्या संदेह कि एक बड़ा पाठक वर्ग उनकी इस पुस्तक को भी प्रीतिपूर्वक अपनाएगा जिस तरह वह पहले भी अपनाता रहा है। -प्रयाग शुक्ल