‘कालामृतम् ’ प्रस्तुत पुस्तक ‘कालामृतम् ’ में जीवन के सत्य ज्ञान ईश्वर समाज रीति-रिवाज के साथ-साथ विभिन्न विधाओं को एक साथ समेटने की कोशिश की गयी है। मृत्यु के बाद क्या है ? वैज्ञानिकता हमें कहाँ तक ले जाती है? तथा जीवन के व्यर्थ मामलों में हम उलझे रहते हैं समाधान क्या है? इसे भी इंगित किया गया है। शीर्षक ‘कालामृतम् ’ काल+अमृत से बना है। काल का अर्थ समय मृत्यु होता है जबकि अमृत का अर्थ काल से परे मृत्यु न होना। अमृत का गुण है अमर करना। इस प्रकार से काल से परे होना ईश्वरत्व है। उक्त ज्ञान का समावेश इस काव्य में स्पष्ट परिलक्षित होता है। भौतिकता के साथ-2 आध्यात्मिकता की पराकाष्ठा ज्ञान-विज्ञान ईश्वरत्व सामाजिक सरोकार मानव मूल्यों को स्थापित करने सभी को एक स्तर पर समन्वय स्थापित करने वाली कविता है। ‘कालामृतम् ’ में प्राकृतिक सौंदर्य से लेकर मानवीय भावनाओं तक प्रत्येक कण-कण में ईश्वर के दर्शन करने का प्रयास किया गया। इसेदर्शन शास्त्र की श्रेष्ठ पुस्तक कहना भी अतिशयोक्ति न होगा।
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