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About The Book
Description
Author
कल्पना समाज की कुरीतियों का विरोध करती है। तलाक अर्थात विवाह संबंध विच्छेद होने के बावजूद वह पहले पति के नाम का ही सिंदूर से अपना मांग भर कर सुहागन ही बनी रहती है क्योंकि वैदिक रीति से संपन्न विवाह इसी जन्म के लिए ही नहीं अग्नि को साक्षी रख कर लिए गए सात फेरे सात जन्मों के लिए पति पत्नी का संबंध हो जाता है और अंत में अपने पति के घर स-सम्मान चली आती है। आधार दो वयस्क पुरुष और महिला जो दुर्भाग्यवश पुरुष पत्नी और महिला पति को खो देती है। उनके बेटे विदेश में ही बस जाते हैं। मां और पिता की मृत्यु होने पर भी स्वदेश नहीं आते अपने-अपने पिता और मां के पास खड़े नहीं रहते। पिता और विधवा मां बेटों से उम्मीद खो चुके थे। दोनों को अकेलापन खलने लगा था। समय ने विधवा महिला और पुरुष जो अपनी पत्नी को खो चुका था एक दूसरे के करीब आ जाते हैं और एक दूसरे का आधार बनकर सुखी जीवन से अकेलापन को त्याग कर शांति से अंत तक एक साथ जीना चाहते हैं और एक दूसरे का आधार पाकर इस दुनिया से अंतिम विदाई भी एक साथ लेते हैं। आधार के नाम पर शारीरिक सुख नहीं बल्कि एक दूसरे के सुख दुख के साथी बन कर खड़े होते हैं।