हर कहानी का अंत लिखा जा चुका है हर कहानी को अपनी शुरुआत लिखनी है इन पंक्तियों के साथ शुरू होती है संदीप गौड़ की पुस्तक ''कम शब्दों का आदमी''। यह एक गहरा दर्शन है जिसमें जीवन की अनिश्चितता की ओर इशारा किया गया है और इसी में छिपी है संभावना कि जीवन को अपने तरीके से जीने की स्वतंत्रता हम सभी के पास है। इसलिए जो हम आज दिखाई दे रहे हैं वह हमारा ही बनाया हुआ जीवन है। गंभीर दर्शन को मात्र दो पंक्तियों में समेटने की क्षमता जिस रचनाकार में है उनकी रचनात्मकता के उन्नत शिखर को हम सहज ही देख सकते हैं महसूस कर सकते हैं। संदीप गौड़ कहते हैँ अगर मैं क़िताब होता तो मेरा शीर्षक भी यही होता पर देखा जाए तो उनके पास शब्दों की कमी नहीं है बल्कि उन्हें मित्तव्ययता से बरतने का हुनर वे खूब जानते हैं। वे कम से कम शब्दों में अपनी बात कहकर अचंभित करते हैं और पाठक की सोच को मथने का काम करते हैं।
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