गिरीश चंद्र पाण्डेय अपनी कविताओं के माध्यम से अपने लोक-जीवन की यात्र कराते हैं उन दृश्यों को दिऽाते हैं जो लोक-जीवन से गायब हो गए हैं या गायब होने की कगार पर हैं। उनकी चिंता में वस्तु परंपरा या उसके हीरो नहीं बल्कि उनमें अंतर्निहित मानवीय मूल्य (सामूहिकता सादगी सहयोग प्रकृति प्रेम प्रतिरोध ईमानदारी) हैं जिन्हें अपनी कविता के माध्यम से वे बचाने की वकालत करते हैं। एक सच्चे कवि के लिए यह जरूरी भी है कि वह प्राचीन रीति-रिवाजों परंपराओं वस्तु आदि को नहीं वरन् उनमें छुपे मूल्यों को बचाने की बात करे क्योंकि समय के अनुसार भौतिक वस्तुओं व तकनीक में परिवर्तन आने से जीवन-शैली में भी परिवर्तन आना स्वाभाविक है। जीवन-शैली में आने वाले परिवर्तन हमारे रीति-रिवाज और परंपराओं में परिवर्तन लाते हैं और जीवन की गति बनाए रऽने के लिए ये परिवर्तन भी जरूरी हैं।-mahesh punetha
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