Karamyog : Bhagwat Gita Ka Manovigyan - Bhag-3 (कर्मयोग : भगवत गीता का मनोविज्ञान - भाग-3) & Akath Kahani Prem Ki : Phareed-Vani Par Pravachan (अकथ कहानी प्रेम की : फरीद-वाणी पर प्रवचन)
This combo product is bundled in India but the publishing origin of this title may vary.Publication date of this bundle is the creation date of this bundle; the actual publication date of child items may vary.कर्मयोग का आधार-सूत्र अधिकार है कर्म में फल में नहीं करने की स्वतंत्रता है पाने की नहीं। क्योंकि करना एक व्यक्ति से निकलता है और फल समष्टि से निकलता है। मैं जो करता हूं वह मुझसे बहता है लेकिन जो होता है उसमें समस्त का हाथ है। करने की धारा तो व्यक्ति की है लेकिन फल का सार समष्टि का है। इसलिए कृष्ण कहते हैं करने का अधिकार है तुम्हारा फल की आकांक्षा अनधिकृत है। लेकिन हम उलटे चलते हैं फल की आकांक्षा पहले और कर्म पीछे। हम बैलगाड़ी को आगे और बैलो को पीदे बांधते हैं कृष्ण कर रहे हैं कर्म पहले फल पीछे आता है – लाया नहीं जाता। लाने की कोई सामर्थ्य मनुष्य की नहीं है करने की सामर्थ्य मनुष्य की है क्यों? ऐसा क्यों है- क्योंकि मैं अकेला नहीं हूं विराट है।ओशो कहते हैं: ‘‘शेख फरीद प्रेम के पथिक हैं और जैसा प्रेम का गीत फरीद ने गाया है वैसा किसी ने नहीं गाया। कबीर भी प्रेम की बात करते हैं लेकिन ध्यान की भी बात करते हैं। दादू भी प्रेम की बात करते हैं लेकिन ध्यान की बात को बिल्कुल भूल नहीं जाते। नानक भी प्रेम की बात करते हैं लेकिन वह ध्यान से मिश्रित है। फरीद ने शुद्ध प्रेम के गीत गाए हैं ध्यान की बात ही नहीं है प्रेम में ही ध्यान जाना है। इसलिए प्रेम की इतनी शुद्ध कहानी कहीं और नहीं मिलेगी। फरीद खालिस प्रेम हैं। प्रेम को समझ लिया तो फरीद को समझ लिया। फरीद को समझ लिया तो प्रेम को समझ लिया।’’ पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदुः प्रेम है वासना से मुक्तिऋ ध्यान है विचार से मुक्ति प्रेम दुस्साहस है वासनाओं का स्वभाव दुष्पूर क्यों है? धर्मिक क्रांति ही एकमात्रा क्रांति है प्रेम का प्रारंभ है अंत नहीं राजनीति का अर्थ है दूसरे पर मालकियत। धर्म का अर्थ है अपने पर मालकियत।
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