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Description
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कर्म संपूर्ण विश्व और जीवन का मूल है, अतः कर्म को उसके बृहत्तर वैश्विक और सामाजिक संदर्भ में समझने का अर्थ है- जगत् और जीवन को ही समग्रता में समझना। कर्म का स्वरूप क्या है? दुविधा की स्थिति में हम अपने कर्तव्य का निर्धारण कैसे करें ? इस संबंध में धर्म और नैतिकता की भूमिका क्या हो? आधुनिक समय में उनको किस सीमा तक व्यवहार में अपनाया जा सकता है ?. कर्मों के परिणाम बहुधा हमारी अपेक्षा से भिन्न क्यों निकलते हैं? कर्म से कर्मफल तक की यात्रा का रहस्य क्या है? मनुष्य की स्वतंत्र संकल्पशक्ति और नियति क्य