hasya vyang par aadharit lekh kahaniyan कुत्ता भौंकता है पर बिल्ली नहीं डरती। वैसे तो अब कुत्ते के भौंकने से कोई नहीं डरता। डरने का सिलसिला खत्म हो चुका है। कुत्ता भी मिलावटी नजर आने लगा है वह उस पर भी भौंक लेता है जिसके तलवे चाट कर वह बड़ा होता है। कभी होते थे कुत्ते वफादार गर किसी ने एक बार भी उसे दो रोटी खिला दीं तो जीवन भर पूंछ हिलाकर अहसान जताता रहता था। कुत्तों की यह नस्ल खत्म हो चुकी है। अब कुत्ते ''राजनीति की भाषा सीख चुके हैं। वे हर उस पर भौंकते हैं जो कदम आगे बढ़ाता है। वे भौंकते हैं पर कोई भय नहीं खाता। बिल्ली को देखकर चूहा भय नहीं खाता चूहा निर्भीक अंदाज में उसके बाजू से निकल जाता है। भय का यह सिलसिला खत्म हो चुका है। कभी आम व्यक्ति सांढ़ तक से डर जाया करता था। पर अब सांढ़ भी केवल आंखे तरेर कर रह जाता है जिसे डरना है वे आंखे देखकर डर जाये वरना वह स्वंय ही अपना रास्ता बदल लेगा । भय समाप्त होने के इस दौर में मैं भी व्यंग्य लिखकर अब यह नहीं सोचता हूँ कि वे मेरे व्यग्यों से भय खायेगें उल्टे वे पीठ थपथपाने जरूर आ जायेगें वाह भाई ! कितना बढ़िया लिखा है पर इससे कुछ होता जाता नहीं है वे कुटिल मुस्कान ओठों पर खिलाकर चले जाते हैं। साहित्यकार वैसे भी दब्बू टाइप का होता है वो उनके पीठ थपथपाने से लेकर कुटिल मुस्कान की क्रिया से स्वंय भी भयभीत हो जाता है। ऐसे दौर में जब कोई किसी से भय नहीं खा रहा तब एक साहित्यकार भयभीत हो जाने में ही अपनी भलाई समझता है । कुत्ते के काटने से लगने वाले चौदह इंजेक्शनों का भय भले ही न रहा हो सांढ़ के सीग मारकर घायल कर देने का भय भले ही न रहा हो पर कुटिल मुसकान से भय अभी भी कायम है। कुत्ता भी अगर कुटिल मुस्कान से किसी को नजर भर कर देख ले तो सामने वाले का सारा तन नम हो जाये। साहित्यकार इस सब के बाबजूद भी रिस्क लेता है।
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