Kashmirnama+Mann Kya Hai

About The Book

This combo product is bundled in India but the publishing origin of this title may vary.Publication date of this bundle is the creation date of this bundle; the actual publication date of child items may vary.”मन का मौन परिमेय नहीं है उसे मापा नहीं जा सकता। मन को पूरी तरह से खामोश होना होता है विचार की एक भी हलचल के बिना। और यह केवल तभी घटित हो सकता है जब आपने अपनी चेतना की अंतर्वस्तु को उसमें जो कुछ भी है उस सब को समझ लिया हो। वह अंतर्वस्तु जो कि आपका दैनिक जीवन है--आपकी प्रतिक्रियाएं आपको जो ठेस लगी है आपके दंभ आपकी चातुरी तथा धूर्ततापूर्ण छलावे आपकी चेतना का अनन्वेषित अनखोजा हिस्सा--उस सब का अवलोकन उस सब का देखा जाना बहुत ज़रूरी है; और उनको एक-एक करके लेने एक-एक करके उनसे छुटकारा पाने की बात नहीं हो रही है। तो क्या हम स्वयं के भीतर एकदम गहराई में पैठ सकते हैं उस सारी अंतर्वस्तु को एक निगाह में देख सकते हैं न कि थोड़ा-थोड़ा करके? इसके लिए अवधान की ‘अटेन्शन’ की दरकार होती है...“मन की थाह पाने के मनुष्य ने बड़े जतन किये हैं। जीवन में उसकी सम्यक् भूमिका क्या है सही जगह क्या है यह जिज्ञासा इतिहास के प्रारंभ से ही मंथन और संवाद का विषय रही है। मन एवं जीवन से जुड़े इन प्रश्नों की यात्रा को जे.कृष्णमूर्ति ने नया विस्तार नये आयाम दिये हैं। 1980 में श्रीलंका में प्रदत्त इन वार्ताओं में मनुष्य के जीवन को एक ऐसी किताब का रूपक दिया गया है जो वह स्वयं है; और उसका पाठक भी वह स्वयं ही है। ‘‘अशोक कुमार पाण्डेय की ‘कश्मीरनामा’ हिन्दी में कश्मीर के इतिहास पर एक पथप्रदर्शक किताब है। यह किताब घाटी के उस राजनैतिक इतिहास की उनकी स्पष्ट समझ प्रदर्शित करती है जिसने इसे वैसा बनाया जैसी यह आज है।’’-शहनाज बशीर युवा कश्मीरी उपन्यासकार ‘‘ ‘कश्मीरनामा’ पढ़कर इस बात का सुखद अनुभव होता है कि इसे एक-एक ऐतिहासिक घटना को बड़े एहतियात के साथ छेड़े बिना किसी भी प्रकार के पूर्वग्रह से मुक्त होकर लिखा गया है। मुझे उम्मीद है ‘कश्मीरनामा’ को कश्मीर में रुचि रखने वाले पाठक शोधकर्ता और शिक्षक कश्मीर के इतिहास की पुस्तकों में एक दिग्दर्शन-पुस्तक के रूप में लेंगे।’’-डॉ. निदा नवाज प्रख्यात कश्मीरी कवि तथा लेखक ‘‘कश्मीर के अतीत और वर्तमान की समझ को लेकर हमारे चारों ओर जो खौफनाक चुप्पी पसरी है उसे तोड़ने की कोशिश करती इस पथप्रदर्शक किताब के महत्व को कम करके नहीं आँका जा सकता। चूँकि कश्मीर हर हिंदुस्तानी की जबान पर मौजूद रहता है थोड़ी असहजता के साथ ही सही ऐसी दर्जनों किताबें पहले ही हिन्दी पाठकों के सम्मुख होनी चाहिए थीं। अब इस तरह के कदमों से कश्मीर को अखबारों और टेलीविजन की सुर्खियों के शिकंजे से बचाया जा सकता है और ये एक शुरुआती संवाद का रूप भी ले सकते हैं जिससे लोग यह विचार कर सकें कि कश्मीर से भारत को आखिर क्या मिला है। और भारत ने कश्मीर में क्या किया है।’’ -संजय काक जाने माने फिल्मकार और लेखक अशोक कुमार पाण्डेय एक चर्चित कवि और विचारक हैं जो सामार्थिक विषयों पर गहन शोध के लिए जाने जाते हैं। उनसे ashokk34@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।
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