एक सच्चा समर्पित रचनाकार अंतत: देश- समाज से तटस्थ नहीं रहता वह तो उसकी सभी अच्छाइयों-बुराईयों उसकी तमाम रूढ़िवादी परम्पराओं का चाहे- अनचाहे रूप में स्वयं भी भुक्तभोगी होता है। यह भुक्तभोगिता की स्वमुक्ति के लिए ही प्रयास नहीं अपितु संसार में व्याप्त आर्थिक वैषम्यता पराधीनता अन्याय उत्पीड़न शोषण असमानता के लिए दीर्घकाल से चले आ रहे संघर्ष के प्रति जद्दोजहद है। जिसे २१ वीं सदी की दुनिया में भी नकार नहीं जा सकता। “कट्टहा ब्राह्मण” मेरी पहली किताब है। इसकी कहानियाँ समाज में व्यवहारिकता से कोसों दूर न होकर हमारे आस –पास परिवार में हर जगह घटती दिखाई पड़ती हैं। कानूनी जकड़ के फलस्वरूप आज भी अस्पृश्यता समलैंगिकता थर्ड जेन्डर बाल दुर्व्यवहार जैसी भयावह कुरीतियां तथा रूढ़िवादी परम्पराएं कानूनी विधि को हासिए पर ला खड़ा कर देती है। सत्य को आच्छादित न करते हुए आज भी समाज इनका दंश झेल रहा है।
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