KAVAYSHSHATR KE NYE PRASHN

About The Book

‘काव्यशास्त्र के नये प्रश्न’ मेरी काव्यशास्त्रीय टिप्पणियों की पुस्तक है। पुस्तक में मूलतः वैचारिक लेख हैं। ये टिप्पणियां ‘अनुभूति के एक प्रवाह’ में लिखी गयी हैं। अर्थ यह कि कथ्य की दृष्टि से ये टिप्पणियां आलोचना के करीब हैं और शिल्प की दृष्टि से डायरी के। मूल बात यह है कि इन्हें वैचारिक टिप्पणियों के रूप में पढ़ा जा सकता है। काव्यशास्त्र पर बात करना पिछड़े होने का संकेत मान लिया गया है। काव्यशास्त्र की मूल पुस्तकों को पढ़ने का चलन भी न के बराबर रह गया है। इस प्रवृत्ति ने सैद्धांतिक समीक्षा की घोर उपेक्षा की। इसका परिणाम यह रहा कि बाद के आलोचक बिना काव्यशास्त्रीय ज्ञान के ही आलोचक होने का दावा करने लगे। अनायास नहीं कि क्रमशः मौलिक आलोचना का खास होता चला गया। हम अक्सर सुनते रहते हैं कि आज की आलोचना कमजोर है। लेकिन इसके कारणों को समझ पाने में हम असमर्थ हैं। कविता की आलोचना से पूर्व हमें यह पता होना चाहिए कि कविता क्या है? कविता के कर्म क्या हैं? तथा कविता और समाज के अंतरसम्बन्ध क्या हैं? इन प्रश्नों की समझ के बगैर आप कविता की जो भी आलोचना करेंगे वह अप्रमाणिक ही होगी। इस पुस्तक को आलोचना के मूल श्रोतों की खोज या प्रस्तावना के रूप में ही पढ़ी जानी चाहिए।पुस्तक की अधिकांश टिप्पणियाँ नये अर्थ-संधान की छटपटाहट के बीच रचित हुई हैं। भारतीय काव्यशास्त्र की परम्परा अति प्राचीन है। युग सन्दर्भ के साथ आलोचना के प्रतिमान भी बदलते चलते हैं। संस्कृत काव्यशास्त्र और हिंदी आलोचना में फर्क केवल यह नहीं है कि संस्कृत आलोचना के केंद्र में सिद्धांत रहा है और हिंदी आलोचना के केंद्र में कृति। एक मुख्य अंतर काल बोध को लेकर उपस्थित हुआ दृष्टिकोण भी है। हिंदी आलोचना वर्तमान या आधुनिक बोध से संचालित है जबकि संस्कृत आलोचना काल को शाश्वत वृत्ति में देखती है। प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय काव्यशास्त्र को आधुनिक दृष्टि से देखा गया है। फलतः व्याख्या भी नवीन हो जाती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि प्राचीन काव्यशास्त्रियों के प्रति अवज्ञा का भाव है। इसे बस इस अर्थ में समझा जाना चाहिए कि युग परिवर्तन के सापेक्ष मूल्यांकन के मापदंड भी बदल जाते हैं। बहुत से आलोचक और काव्यशास्त्री पुराने आचार्यों के मतों पर प्रश्न चिह्न नहीं लगाना चाहते। किन्तु मेरा मानना है कि ऐसा करके हम प्राचीन काव्यशास्त्रियों का सम्मान न करके उनका अपमान ही करते हैं। पुराने पर प्रश्न चिह्न खड़ा करके ही हम अपनी परम्परा का विस्तार कर सकते हैं। प्रस्तुत टिप्पणियों को इसी ढंग से पढ़ा जाना चाहिए। --शशांक शुक्ल
Piracy-free
Piracy-free
Assured Quality
Assured Quality
Secure Transactions
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
downArrow

Details


LOOKING TO PLACE A BULK ORDER?CLICK HERE