स्वप्निल श्रीवास्तव हिन्दी के सुपरिचित कवि और कथाकार हैं। यह उनका पहला उपन्यास है यह उपन्यास मध्यवर्गीय जीवन का मार्मिक वृतांत है। मध्यवर्ग की अपनी सीमा-रेऽा है जो इस रेऽा का उलंघन करता है उसे लंबी यंत्रणा से गुजरना पड़ता है। इस समाज में प्रेम एक वर्जित कर्म है। उपन्यास का नायक कवि अपनी शर्तों पर जीवन जीना चाहता है और कविता उसका हर स्थिति में उसका साथ देती है। नायक समय और सत्ता की प्रचलित अनैतिकताओं के विरुद्ध अपनी राह बनाता है और संघर्ष करता रहता है। यह कथा लोकजीवन से लेकर नागर जीवन तक विस्तृत है। पाठक उपन्यास के अनेक स्थलों पर संवेदनशील हो सकते हैं। कवि और कविता दोनों मिलकर इच्छा की रचना करते हैं। उपन्यास के विवरणों को लेऽक ने काव्यात्मक बनाया है यहां लेऽक का कवि रूप प्रकट होता है। प्रेम की यह अधूरी कथा में भी एक पूर्णता है। इस उपन्यास की भाषा जीवन की भाषा है वह अंत तक पाठकों को अपने बंधन में बांधे रहती है।
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