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About The Book
Description
Author
उत्तराखंड की पिंडर घाटी में लोग मस्तमौला हैं, अभाव में भी ख़ुश और जीवन के प्रति एक तटस्थ भाव लिए हुए। इस यात्रा वृतांत में महानगरों से अलग-अलग पेशों और रुचियों के लोग एक एनजीओ के प्रोजेक्ट पर सुदूरवर्ती गांवों में पढ़ाने के लिए जाते हैं। वे वहाँ घूमते-टहलते हैं, ट्रैकिंग करते हैं और अपने अनुभव साझा करते हैं। वे उस आदिम सी दिखने वाली घाटी को भौंचक्की निगाहों से देखते हैं। पिंडर घाटी कैसी है इसकी एक झलक इससे मिलती है कि वहाँ ब्राह्मण नहीं हैं, नाई नहीं है और लुहार भी नहीं है। लोगबाग पुराने ज़माने के हिसाब से एक दूसरे का बाल काट देते हैं और पूजा-पाठ के लिए तीन-चार महीनों में कोई ब्राह्मण गढ़वाल से आता है। लेकिन घाटी में एक ऐसी चीज़ मिलती है जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में करोड़ों रुपये कीमत है। वह एक जड़ी है जो यौनवर्धक है और जिसे निकालकर यहाँ के लोग अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं।