जड़ें हैं सन् साठ के आस-पास की ये कविताएँ। उन दिनों की पत्र-पत्रिकाओं में शायद कुछ प्रकाशित हुई थीं। फिर समय के साथ बहुत गहराई में कहीं चली गईं। छह दशक से ज़्यादा गुज़र गए। उपरांत के पहले की ये कभी की कविताएँ हैं। अब पहली बार ये किसी संग्रह का हिस्सा बन रही हैं। इसमें अपनी हस्तलिपि को कविताओं में सहेज रहा हूँ।~ विनोद कुमार शुक्ल
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