बहुत से लोगों की तरह मेरा भी मानना था कि जो कुछ भी कवि को कहना होता है वह अपनी कविता में कह चुका होता है । फिर लगा कि नहीं सब कुछ कह चुकता तो नई कविता न लिखता । हर नई कविता के बाद भी कुछ तो रह ही जाता है जिसे व्यक्त करने की बेचैनी होती है कवि के मन में । सामान्य जीवन में व्यक्ति अपनी बात कह कर खत्म करता है परन्तु सामान्य से कवि वहीं अलग हो जाता है ।
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