कहते हैं यात्रा और अनुभव सबसे अच्छे शिक्षक होते हैं। जो ज्ञान आप कई किताबें पढ़कर अर्जित करते हैं उतने अनुभव और सीख के लिए एक अच्छी यात्रा ही काफी है। देश दुनिया और समाज को जानना है तो भ्रमण ज़रूरी है। ताज़ी सोच और हवा दोनों के लिए दिमाग और घर की ‘खिड़कियों के उस पार ‘ जाना ही पड़ता है। मौरीश नागर की पुस्तक यात्राओं और कल्पनाओं का अनूठा संगम है। इस पुस्तक में कहानियों के छोटे छोटे संग्रह हैं जिनमें गाँव की पगडंडियों से लेकर निरन्तर बदलती हमारी पीढ़ियों और बचपन की यादों को समेटे हुए मिश्रित किस्सों का वर्णन है। पिछली पीढ़ी में इन धरोहरों के लिए स्नेह और चिंता भी दीगर है। मौरीश की लेखनी ‘मानव कौल’ से न केवल प्रभावित है बल्कि उन्ही की भांति वो अपनी कहानियों के पात्रों का इतनी सहजता से वर्णन करते हैं कि उनके पात्र किताब के हर पन्ने पर जीवंत नजर आते हैं। इस कहानी-संग्रह में वर्णित कहानी ‘मुंडेर पर बैठी चिड़िया’ मेरी पंसदीदा रही। इस कहानी में लेखक ने चिड़िया की उदासी के पीछे के कष्ट को समझने और अवलोकन करने का वर्णन है। इस आपा-धापी की ज़िन्दगी में हम प्रकृति के सौंदर्य बोध को ना तो ठीक से देख पाते हैं ना ही जी पाते हैं। ऐसे में बूढ़े बरगद से बात और पक्षियों की जिंदगी को करीब से समझना लेखक की संवेदनशीलता का परिचायक है। मॉरिश बताते हैं कि हमारे सामने सबकुछ घटित होता रहता है लेकिन हमने केवल भौतिक सुखों के पीछे भागते हुए जीवन के असल मर्म और सौंदर्य को अनदेखा करते रहते हैं। कहानियां पढ़ते हुए शायर ताहिर फ़राज़ का एक शेर बार बार जहन में घूम रहा था - “ज़िन्दगी तेरे तआक़ुब में हम इतना चलते हैं की मर जाते हैं ! ‘खिड़कियों के उस पार’ पुःतक की भाषा सरल है और आपके दिल के भावुक हिस्से को ज़रूर छू जाएगी।
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