*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹311
₹400
22% OFF
Hardback
All inclusive*
Qty:
1
About The Book
Description
Author
जैसे कुम्हार गीली मिट्टी से मनचाहा आकार गढ़ता है फिर उन्हें पक्का करने के लिए भट्ठी में पकाता है वैसे ही बच्चे भी गीली मिट्टी हैं जिन्हें आप बेहतर व मनचाहे आकार में ढाल सकते हैं। उन्हें पक्का करने के लिए आपको भी उन्हें समय और व्यावहारिकता की भट्ठी में पकाना होगा। तभी वे मजबूत बनेंगे। यह आप पर निर्भर है कि आप गीली मिट्टी से घड़ा सुराही गमला बनाते हैं या सजावटी सामान। मान लीजिए आपने सुराही बनाई मगर व्यस्तता के चलते उसकी फिनिशिंग नहीं कर सके या चाक से उतारते समय ध्यान भटक जाए धागा टूट जाए. तो किसी भी सूरत में बिगड़ेगा उस सुराही का ही रूप-स्वरूप। जब तक आपका ध्यान जाएगा सुराही बिगड़े रूप में ढल चुकी होगी। बच्चे बहता पानी भी हैं। जैसे जलधारा अपना रास्ता खुद बना लेती है; जिधर भी राह मिलती है उधर ही चल पड़ती है वैसे ही बच्चे भी अपना रास्ता तलाश लेते हैं—सही या गलत वे नहीं जानते। बच्चों को उनका रास्ता चुनने में मदद कीजिए। बच्चों के मन में अभिभावकों के प्रति डर नहीं बल्कि प्यार-सम्मान होना चाहिए। हमारी असली संपत्ति बच्चे ही हैं। अगर उनको सही दिशा मिल गई तो हम सबसे अमीर और खुशकिस्मत हैं। यदि वही लायक न बनें तो भले ही हमारे पास महल हो मगर हम कंगाल से भी बदतर हैं। बच्चे आपके हैं तो जिम्मेदारी भी आपकी ही है कि उनमें बचपन से ही अच्छी आदतें और संस्कार डालें। आदतें-संस्कार कोई घुट्टी नहीं कि घोटकर पिला दें। यह शुरुआत बचपन से ही होती है जो आपको करनी है। बच्चों में अच्छे विचार और संस्कार पैदा करने के लिए हर माता-पिता के पढ़ने योग्य एक आवश्यक पुस्तक।.