छाया श्रीवास्तव की कहानियों को एक सूत्र में पिरोने का प्रायोजन पाठकों को उनके कथानक लेखन शैली से परिचय कराने का एक छोटा सा प्रयास है । उन्होंने अध्यापन परिवार में सामंजस्य बिठाने के चलते लेखन विलम्ब से प्रारंभ किया । यह कहानियां छाया श्रीवास्तव के भीतर जागृत हुए भाव धीरे - धीरे फड़फड़ाते खुलते पन्ने मानो किसी खिलती हुई कोंपल के मर्म का एहसास हों ...हर कहानी के पात्रों का अपना भोगामहसूस कराता दर्द है - मर्म है । कहानी के पात्र कहां मानते हैं एक बार लेखक द्वारा रचे जाने पर वो अपनी मनमानी ज़िद पर आ जाते हैं । कहानी संग्रह एक कोशिश है समृद्ध कथाकारों के मंच पर अपनी थोड़ी सी जगह पहचान बनाने की । सुश्री उषा प्रियम्वदा की प्रेरणा के बिना यह संभव नहीं था ...
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