‘‘खोखले होते रिश्ते’’ मेरा चौथा ‘लघुकथा’ संग्रह है। मेरी ‘लघुकथा’ का जन्म किसी न किसी घटना से होता है। घटना आंखों देखी या सुनी भी हो सकती है। संसार में हर पल कुछ न कुछ घटता ही रहता है। ‘लघुकथा’ किसी घटना से प्रेरित जरूर होती है लेकिन हर घटना ‘लघुकथा’ नहीं बन सकती। जब किसी घटना को देख सुनकर कुछ अनुभूति होती है तब मैं समझता हूँ कि ‘लघुकथा’ का बीज जम चुका है। और फिर कल्पना के सहारे धीरे-धीरे वह घटना ‘लघुकथा’ का आकार लेती है।
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