क्षिनतज में शब्द रूपी कण का ननिााध ववचरण हो रहा है। हर व्यज़क्त भावनात्मक रूप से एक लेखक अवश्य होता है ऐसा मेरा मानना है। वह व्यज़क्त ज़जसने जुलाहे की तरह इन शब्द के कणों को बिना गाूंठ छोडे एक भावना का म ता रूप दे हदया जग उसे लेखक अथवा कवव के नाम से जानता है। “ख़्वाहहशों की कसक” में मैंने इन्हीूं कणों को रचना में वपरोकर आप लोगों के समि रखने का प्रयास फकया है। कदाचचत एक पेशेवर जुलाहा ना होने के कारण कई शब्द आहद में गाूंठ रह गई होंगी। प्रयास रहेगा अगले अूंक में इसकी कमी को हरसूंभव प री की जा सके।
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