बात ज़रा अजीब है! किस्से-कहानियों में हिंसा गंदगी गरीबी कलंक या गुनाह को ज़्यादा तारीफ़ें मिलती हैं। ओज और जोश की लेखनी में ज़्यादा वाह-वाही मिलती है। समाज-सुधार देशभक्ति माता-पिता या संतान के ऊपर आधारित लेखनी को ऊँचे पायदान पर परखा जाता है लेकिन प्रेम और शृंगार संघर्ष करते नज़र आते हैं जबकि प्रेम ही तो सबसे मूलभूत विचार है जहाँ से सारे अच्छे विचारों की नदियों को उद्गम मिलता है। दीपशिखा ने इसी प्रेम को गहराई से लिखा है और कोशिश की है उसे वह मुक़ाम देने की जिसका वह हमेशा से हकदार है। उनकी लिखी यह सारी कविताएँ बहुत ही सराहनीय हैं लेकिन ‘तुम! हाँ तुम ही हो’ ‘शर्माना कोई तुमसे सीखे’ ‘दूर कहीं बादल’ ‘यादों की नरम घास’ ‘मेरी हर बात पर ऐतराज़’ ‘झूठ पकड़ा गया’ जैसी कविताएँ उनकी लेखनी की क़ाबिलियत को बताती हैं। कुछ कविताएँ बहुत ही सरल तो कुछ बहुत ही गहरे भाव लिए हुए हैं और यह गहराई उनकी लिखी ‘बलात्कार’ कविता से जाहिर होती है। साथ ही है ‘श्याम सुनो’ कविता बहुत-बहुत ही ज़्यादा शानदार बन पड़ी है। तो पलटिए इन पन्नों को और खो जाइए प्रेम की दुनिया में जिसे दीपशिखा ने बसाया है। -जील इन्फ़िक्स
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