Khyal Akelepan Ka
Hindi

About The Book

“ख्याल अकेलेपन के” किताब को लिखने के पीछे मेरा केवल एक ही उद्देश्य है कि मेरे कुछ ख्याल आप सब के समक्ष रख सकूं। हमारे देश में कई बड़े लेखक और शायर है। और मैं अभी उनके अंश मात्र हूँ । मैं अपने लिखे ख्यालो को शेर और ग़ज़ल का नाम नहीं दे सकता क्योंकि मेरे ख्याल अभी तक ग़ज़ल के नियम की रेखा को पार नहीं कर पाए है। ग़ज़ल के हर नियम का मैं सम्मान करता हूँ और ये मानता हूँ कि केवल लिखने से कोई शायर नहीं हो जाता। ग़ज़ल के अपने नियम होते है। उसे बहर व लय की कसौटी से गुजरना होता है। तब जाकर कही ग़ज़ल कहलाती है। मैं मानता हूँ की ग़ज़ल के मोती को जब तक नियम के धागे में नहीं पिरोया जाये तब तक वो ग़ज़ल अपने मुकाम तक नहीं पहुँचती। हम सब अपने जीवन में किसी ना किसी को अपना आदर्श मानते है और उनके बताये मार्ग पर चलते है। मैं भी यही मानता हूँ। पर एक बात है कि उनके बताये मार्ग पर चल कर भी हमे हमारी स्वयं की कहानी लिखने का हक़ जरूर होता है।मेरी इस किताब में मेरे सारे स्वतंत्र ख्याल है।
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