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About The Book
Description
Author
यह कहानी भी एक ऐसे ही मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले किशोर की है जो बारहवीं कक्षा के बोर्ड इम्तिहान में अच्छे अंक प्राप्त करने के बाद अपनी छोटी-छोटी आँखों में बड़े सपने लिए दिल्ली की बस में सवार हो गया। लड़के ने स्कूल टॉप किया था तो उसे लगा की दिल्ली यूनिवर्सिटी वाले पालक-पाँवड़े बिछाकर उसका स्वागत करेंगे। लेकिन कटऑफ़ सूची देखने के बाद उसे एहसास हुआ कि नॉर्थ कैम्पस के प्रतिष्ठित कॉलेजों में दाख़िला पाने के लिए उसके अंक नाकाफ़ी हैं। फिर किसी ने उसे सांत्वना भरी सलाह दी कि अगर उसको दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही स्नातक होना है तो कैम्पस के बाहर किसी भी कॉलेज में दाख़िला ले ले क्योंकि डिग्री तो वहाँ भी उसे दिल्ली यूनिवर्सिटी की ही मिलेगी। --- भूपेन्द्र चौधरी का जन्म 21 फ़रवरी 1999 को हरियाणा के भिवानी ज़िले के धनाणा गाँव में हुआ था। अच्छी शिक्षा के लिए पिता द्वारा घर से दूर रखने के निर्णय के बाद भूपेन्द्र ने जवाहर नवोदय विद्यालय में पढ़ते हुए सात साल राजस्थान और एक साल गुजरात में बिताया। भूपेन्द्र ने दिल्ली विश्वविद्यालय का हंसराज कॉलेज से हिन्दी में बीए किया है। दिल्ली आने के बाद से ही भूपेन्द्र ने सोशल मीडिया पर सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों पर थोड़ा बहुत लिखना शुरू कर दिया था जो समय के साथ गहन होता चला गया। यह किताब उन्हीं तीन-साढ़े तीन सालों की गहनता का नतीजा है।