This combo product is bundled in India but the publishing origin of this title may vary.Publication date of this bundle is the creation date of this bundle; the actual publication date of child items may vary.आज़ाद हिंदुस्तान के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि लाखों के हुजूम ने राजधानी को चारों तरफ़ से घेरा और एक स्वर में सरकार से गुहार की। 2020-21 का किसान आंदोलन इतिहास में दर्ज रहेगा। दिल्ली की कड़ाके की ठंड और बारिश में भी किसानों के हौसले बुलंद रहे। शांतिप्रिय ढंग से देश के अन्नदाताओं ने मोदी सरकार के सामने पहाड़ जैसी चुनौती खड़ी करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि उन्हें कॉर्पोरेट की ग़ुलामी मंज़ूर नहीं है। यह लड़ाई खेती ही नहीं बल्कि देश के स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता को बचाने की लड़ाई है। यह किताब इन्हीं संघर्षों की आवाज़ों का संकलन है। क्यों इन क़ानूनों को लागू किया गया? क्यों यह कदम देश के किसान और उन पर निर्भर अनेकों को बदहाली की तरफ धकेलेगा? क्यों इन क़ानूनों का असर सिर्फ़ किसानों तक सीमित नहीं है? इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढ रही है यह किताब। लेखक: इरशाद खान सिकंदर हन्नान मोल्ला सुबोध वर्मा प्रभात पटनायक तेजल कानितकर जूही चटर्जी एम श्रीधर आचार्युलु तारिक अनवर रवि कौशल नाज़मा खान रौनक छाबड़ा मुकुंद झा भाषा सिंह अमनदीप संधू विक्रम सिंह लेज़ली ज़ेवियर पी. साईनाथसन् 1945 में महाराष्ट्र के ठाणे में एक बड़े विद्रोह की शुरुआत हुई। यह था – वारली आदिवासी विद्रोह। यह देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे उन किसान आंदोलनों का बेहद ज़रूरी हिस्सा था जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद और हिन्स्दुतान की आजादी से पहले शुरू हुए थे। इन सभी किसान आंदोलनों का नेतृत्व अखिल भारतीय किसान सभा द्वारा किया जा रहा था। इन आंदोलनों ने सामंतवाद और ज़मीदारी प्रथा के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की। इन आंदोलनों ने किसान सभा के संस्थागत ढाचे को तो मजबूत किया ही वामपंथ के राजनीतिक प्रभाव को भी असरदार बनाया। किसान सभा के तात्कालिक दिग्गज नेताओं और कार्यकर्ताओं के मौखिक साक्षात्कार को आधार बनाकर लिखी गई यह किताब ठाणे के दो तालुकों – तलासरी और डहाणू (अब पालघर ज़िला) – के वारली आदिवासियों की गरिमा और संघर्ष का इतिहास बताती है।
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