क़िस्सों की गुल्लक उर्फ़ अपूर्वा' आत्मकथात्मक शैली में लिखी संस्मरणों के मिले-जुले रंगों को समेटे सत्यकथा आधारित प्रस्तुति है। पुस्तक का शीर्षक 'क़िस्सों की गुल्लक उर्फ़ अपूर्वा' रखने का विचार मन में यूं उपजा कि इस कथानक की नायिका अपूर्वा अपने नाम के अनुरूप ही अनोखी है अटपटी है और सामान्य जन की भीड़ से एकदम अलग-थलग है; जो अपने आप में उस गुल्लक (पिगी बैंक या कैश बैंक) की तरह है जो सिक्कों से नहीं वरन ढेर सारे क़िस्सों से भरी हुई है।मदमाती वासंती बयार की तरह वह कॉलेज में प्रवेश करती। उसके आते ही मानो कॉलेज का वातावरण भी उमंग से भर उठता। सुंदर तो थी ही वह; ऊपर से हम सबसे काफी अलग। अपने आप में अनूठी अटपटी चटपटी और बिंदास। सभी की प्रिय थी वह और जहां तक मेरा सवाल है मेरी सर्वाधिक प्रिय अंतरंग सखी और मेरी इस पुस्तक की नायिका।
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