Kitne Parde or Uthaun (कितने परदे और उठाऊँ)


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About The Book

कब तक चलूँ फुदक-फुदक कर मैं भी उड़ना चाहती हूँ उन्मुक्त गगन में विचरण करना चाहती हूँ तुमने मुझे पंछी तो बनाया है मगर न पंख दिए न उड़ना सिखाया है जाने तेरे मन में ये क्या आया है। राह में काँटों का जाल भी बिछाया है। अब कैसे करूँ मैं इसे पार तू ही बता दे ऐ मेरे रचनाकार !
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