कोरा कागज़ महज़ एक किताब नहीं है बल्कि एक एहसास है। कोरा कागज़ एक सफर है ऐसे शख़्स की जिसे हमेशा से ही एहसास एक फ़िज़ूल की चीज़ लगती थी पर ज़िन्दगी के सफर में जब वो आगे बढ़ा तो पता लगा कि दरअसल ज़िन्दगी का दूसरा नाम ही एहसास है। हर एक नौजवान ज़िन्दगी में कई पहलुओं से गुजरता है उसमें से सबसे अहम पहलू है मोहब्बत जिसे हम नकार नहीं सकते। मोहब्बत हर बार मुक़म्मल नहीं होती पर जब भी ये जाती है तो कुछ न कुछ पीछे जरूर छोड़ जाती है। यहाँ पर भी कुछ ऐसा ही हुआ एक मोहब्बत मुक़म्मल तो नहीं हुई लेकिन पीछे अपने साये के रूप में ग़ज़ल और नज़्म छोड़ गई। इस किताब में ज़िन्दगी के कुछ अहम ताज़ुर्बें और मोहब्बत के अहसास को समेटने की कोशिश करी गयी है। इसे पढ़ते वक्त आप अपने आपको ढूढ़ पायेगें और जान पायेगें कि ज़िन्दगी वो नही जो हम देखते हैं या जीते हैं पर ज़िन्दगी तो उन पलों में छिपी होती है जिसकी वजह से हम जीना छोड़ देते हैं। इतनी भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में हम ना जाने क्या-क्या पीछे छोड़ आये हैं। आइये फिर चलते है इसी सफ़र पर।.
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