Kotuhal (कौतूहल - दादी की सुनाई कहानियां)

About The Book

ौतूहल कितना अजीब शब्द है। है ना? अनजानी चीजों के प्रति हमारा जो आकर्षण होता है उनके बारे में जिज्ञासा होती है उनके आसपास हम जितनी कपोल-सच्ची और झूठी कल्पनाएँ गढ़ते हैं वही तो कौतूहल है। मेरी दादी जो कि इस किताब की किस्सागोईो हैं कहती हैं शायद कौतूहल शब्द कुमाऊँनी भाषा के कौतिक शब्द का भाई-बंधु है। कुमाऊँनी भाषा में कौतिक का मतलब है नाटक या प्रहसन। ""तो ऐसे कौतिक देखने से पहले जो भावना आने वाली ठहरी वो हुई कौतूहल।"" ऐसा दादी का मानना है। दादा दादी के गाँव जाने का मेरा मन नहीं होता था। दिल्ली का शोरगुल मुझे पसंद था। उसके उलट चम्पावत की निर्जन शांति। मैं हमेशा मना कर देती थी “नहीं जाना मुझे गाँव। आप लोग हो आइए। इन पाँच दिनों में मैं अपने दोस्तों के साथ मजे करूँगी।"".About the Authorकौतूहल की लेखिका इलिना जोशी संस्कृति स्कूल नई दिल्ली में बारहवीं कक्षा की छात्रा हैं। उनकी नृतत्व और सामाजिक विज्ञान में गहरी रुचि है और वह अपनी स्नातक की पढ़ाई सामाजिक विज्ञान से करना चाहती हैं। प्रस्तुत पुस्तक पिताजी द्वारा दी गयी चुनौती 'क्या तुम हिंदी भाषा में भी लिख सकती हो?"" का प्रत्युत्तर है।.
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