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About The Book
Description
Author
सामाजिक अव्यवस्था अलगाव विषमता और कुरीतियों के विरुद्ध संसद से सड़क तक लगातार अपनी आवाज उठाने वाले ओड़िया के बहुचर्चित समकालीन कवि डॉक्टर प्रसन्न कुमार पाटशाणी से हिंदी के पाठक अपरिचित नहीं है। पहले भी इनके काव्य संग्रह हिंदी में अनूदित व प्रकाशित हो चुके हैं। हिंदी में अनूदित इस नवीनतम काव्य संग्रह में एक ही जगह समाजवाद पूंजीवाद गरीबी शोषण अत्याचार मंदिर मस्जिद सांप्रदायिकता आध्यात्म आक्रोश क्रांति राजनीति प्रकृति और जीवन की क्षणभंगुरता संबंधी कविताओं से रूबरू होने का अवसर मिलेगा। कवि से उसका परिचय मांगने पर कभी कहता है मुझसे परिचय मत मांगो मैं एक आर्त्तनाद के सिवा कुछ नहीं !! समाज में व्याप्त वैमनस्यता और भेद-भाव के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजाते हुए कवि अपनी प्रिया का साथ मांगते हुए कहता है यदि मेरे साथ तैर सकती हो तो आओ तैरो मेरे साथ क्रांति की नदी में तोड़कर सारे बंधनों की डोर। कवि का मानना है कि जाएगा कोई नहीं साथ। रिश्ते सब निभेंगे इसी मृत्युलोक में। संग्रह की लगभग सारी कविताएं पाठकों को निश्चित ही काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर देंगी। कविताओं की सीधी-सरल भाषा में अद्भुत प्रवाह है। यह काव्य-गुण संग्रह की किसी भी कविता में देखा जा सकता है। आशा है सुपरिचित अनुवादक राजेंद्र प्रसाद मिश्र द्वारा ओड़िया के इस महत्वपूर्ण कवि एवं प्रखर राजनीतिज्ञ की हिंदी में अनूदित 51 कविताओं का यह गुलदस्ता सुधि पाठकों में एक नई को उत्सुकता जगाएगी। --