भगतसिंह की दुर्धर्ष क्रान्तिकारी महान देशभक्त और शहीद-ए-आज़म की छवि को ही पुस्तकों में अधिकांशतः उभारा गया है। उनके व्यक्तित्व के अनदेखे पहलुओं को उजागर करने तथा उसके जीवन-दर्शन के क्रमिक विकास को पाठकों के सामने प्रस्तुत करना क्रान्ति-पथ का पथक पुस्तक का उद्देश्य है। भारत के नौजवानों में क्रान्ति के प्रति जागृति और कटिबद्धता उत्पन्न करने के उद्देश्य से शहादत देना ही भगतसिंह के जीवन का लक्ष्य था। भगतसिंह के क्रान्तिकारी साथी जयदेव कपूर बताते हैं ‘भगतसिंह की प्रतिभा बहुमुखी थी। उनको साहित्य संगीत गाना सिनेमा इन सब चीज़ों से लगाव था।’ क्रान्तिकारिणी दुर्गा भाभी सांडर्स को मारने के बाद पुलिस और सी.आई.डी. की ऐन नाक के नीचे से निकलकर लाहौर से कलकत्ता भगतसिंह जिनकी मदद से ही जा पाए कहती हैं ‘वह सौन्दर्य का उपासक था कला का प्रेमी था और जीवन के प्रति उसे आसक्ति थी।’ देशहित में वह फाँसी के फन्दे पर झूल गए। देश के लिए आज़ादी हासिल करने का जुनून उनकी बाक़ी सारी चाहतों पर भारी पड़ गया।
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