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About The Book
Description
Author
क्या मनुष्य एक यंत्र है? इसमें ओशो कहते हैं-मैं मनुष्य को लड़ता में डूबा हुआ देखता हूं। उसका जीवन बिलकुल यांत्रिक बन गया है। हम जो भी कर रहे हैं वह कर नहीं रहे हैं हमसे हो रहा है। हमारे कर्म सचेतन और सजग नहीं हैं। वे कर्म न होकर केवल प्रतिक्रियाएं हैं। यह मंजिल जीवन मृत्यु-तुल्य है। जड़ता और यांत्रिकता से ऊपर उठने से ही वास्तविक जीवन प्रारंभ होता है।उस समय ओशों के इन शब्दों को पढ़ते ही लेखक के जीवन में एक झंझावत की शुरुआत हुई थी। यह सबसे पहला क्रांति-सूत्र था जो ओशो तक पहुंचने के लिए एक महासूत्र बन गया था। अगर आपने अभी तक ओशों की और कोई पुस्तक नहीं पढ़ी है और यह पहली पुस्तक आपके हाथ लगी है तो अपनी अनुभूति के आधार पर सावधान रहे क्योंकि यह आपके जीवन में महाक्रांति की एक चिनगारी सिद्ध होगी।