कृष्णा’ उन्नीस सौ साठ के दशक में पहाड़ के एक गााँव में रह रहे एक ककशोर के संघर्षमय कवद्मार्थी जीवन की कहानी है। तत्कालीन सामाजजक पररवेश और समाज में प्रचललत रीकत-ररवाजों और मान्यताओं के चलते जजसका ककशोरावस्था में अनजाने में परवान चढ़ा हुआ प्रेम सम्बंध कभी पूणष न हो सका। कहानी में जहााँ गााँव के समाज में मौजूद एकता भाईचारे और आपसी प्रेम के दशषन होते हैं वहीं कट्टर जाकतवाद की झलक भी ददखाने का प्रयास ककया गया है। दूसरी ओर रोजगार का अभाव और युवा पीढ़ी का संघर्ष भी दृष्टिगत होता है। कवसररत प्रेष्टमका के कनधन का समाचार सुनकर नायक के हृदय में भरी प्रर्थम प्रेम की स्मृकत जाग जाती है हृदय में लिपा कवयोग के कवर्ाद का बााँध टूट जाता है और उसका हृदय र्थम जाता है।
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