This combo product is bundled in India but the publishing origin of this title may vary.Publication date of this bundle is the creation date of this bundle; the actual publication date of child items may vary.आदमी कहां गलत हो गया है? आदमी ने स्वाभाविक और प्राकृतिक होने की हिम्मत नहीं की है। यह उसकी बुनियादी गलती हो गई है। आदमी ने कुछ और होने की कोशिश की है-जजो वह है उससे। पशु पशु हैं पक्षी पक्षी हैं पौधे पौधे हैं। अगर एक गुलाब में कांटे हैं तो वह इस परेशानी में नहीं पड़ा रहता कि मैं बिना कांटों का कैसे हो जाऊं? वह अपने कांटों को भी स्वीकार करता है अपने फूल को भी स्वीकार करता है। उसकी स्वीकृति में कांटों से विरोध और फूल से प्रेम नहीं है। उसकी स्वीकृति में कांटे और फूल दोनों समाविष्ट हैं। इसलिए गुलाब प्रसन्न है क्योंकि उसे कोई अंग काटने नहीं हैं। कोई पक्षी अपने एक पंख को इनकार नहीं करता है और एक को स्वीकार नहीं करता है। और कोई पशु अपनी जिंदगी को आधा-आधा तोड़ कर स्वीकार नहीं करता है पूरी ही स्वीकार कर लेता हैओशपुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदुः मनुष्य एक रोग क्यों हो गया है* ध्यान का अर्थ है: समर्पण टोटल लेट-ग* मन के कैदखाने से मुक्ति के उपा* जिंदगी के रूपांतरण का क्या मतलब है* करुणा अहिंसा दया प्रेम इन सबमें क्या फर्क है?.कृष्ण का व्यत्तिफ़त्व बहुत अनूठा है। अनूठेपन की पहली बात तो यह है कि कृष्ण हुए तो अतीत में है लेकिन हैं भविष्य के। मनुष्य अभी भी इस योग्य नहीं हो पाया कि कृष्ण का समसामयिक बन सके। अभी भी कृष्ण मनुष्य की समझ के बाहर हैं। भविष्य में ही यह संभव हो पाएगा कि कृष्ण को हम समझ पाएं।कृष्ण अकेले ही ऐसे व्यत्तिफ़ हैं जो धर्म की परम गहराइयों और ऊंचाइयों पर होकर भी गंभीर नहीं हैं उदास नहीं हैं रोते हुए नहीं हैं। साधारणतः संत का लक्षण ही रोता हुआ होना चाहिए=जिंदगी से उदास हारा हुआ भागा हुआ। कृष्ण अकेले ही नाचते हुए व्यत्तिफ़ हैं=हंसते हुए गीत गाते हुए। अतीत का सारा धर्म दुखवादी था। कृष्ण को छोड़ दें तो अतीत का सारा धर्म उदास आंसुओं से भरा हुआ था। हंसता हुआ धर्म जीवन को समग्र रूप से स्वीकार करने वाला धर्म अभी पैदा होने को है।
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