Krishnavtar : Vol. 6 : Mahamuni Vayas

About The Book

कृष्ण-चरित्र के अछूते-मार्मिक प्रसंगों को उद्घाटित करनेवाली वृहद औपन्यासिक कृति कृष्णावतार का यह छठा खंड है। लेखक के अनुसार छठे खंड में निबद्ध होकर भी यह कथा इस समूची ग्रंथमाला की प्रस्तावना के समान है। अतः इस खंड की महत्ता स्वयंसिद्ध है। देश-काल की दृष्टि से यह वह समय है जब आर्यावर्त में वर्ण-व्यवस्था जन्म ले रही थी। ऐसे में मूल महाभारत के रचयिता तीर्थ-संस्कृति के जनक और ‘श्रुति’ को प्रामाणिक रूप से लिपिबद्ध करनेवाले कृष्ण द्वैपायन व्यास अपने जीवन-काल में ही एक महान धर्म-निर्माता महामुनि यहाँ तक कि भगवान वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हो गए थे। लेकिन एक मछुआरे की कन्या के गर्भ से पैदा होकर इस महान गौरव तक वे किस प्रकार पहँुचे इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता। यह उपन्यास इसी अभाव की सुन्दरतम पूर्ति है। किशोर और युवा व्यास को इस कृति में हम अकल्पनीय रूप से सक्रिय देखते हैं जिसे तत्कालीन समाज के जटिलतम संघर्षों और उसके अपने दुखों ने एक नया व्यक्तित्व प्रदान किया है। इसके अतिरिक्त इस उपन्यास में कितनी ही ऐसी घटनाएँ और चरित्र हैं जो हमें मुग्ध और सम्मोहित कर लेते हैं।.
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