कृष्णायन' में पं. राधेश्याम कथावाचक देश के उद्धार के लिए ब्रज-मंडल की एकता के माध्यम से एक सुसंगठित राष्ट्र स्थापित करने का संदेश देते हैं। राष्ट्रीय भाव चारों ओर व्याप्त हो सके इसके लिए श्री कृष्ण के खेल-क्रीड़ा तथा विभिन्न पर्वों— होली झूलनोत्सव आदि के माध्यम से विभिन्न जातियों के लोगों की उन्नति पर भी ध्यान दिया है। ब्रज के माध्यम से स्वदेशी का प्रचार-प्रसार तथा कंस (अंग्रेजी) शासन की नीतियों का बहिष्कार। अपने समय की जटिलताओं राजनीतिक समस्याओं का हल करने का सही उपाय किसी को मालूम नहीं पड़ रहा था। यही स्थिति 'कृष्णायन' में कंस के राज्य में थी। बड़े तत्वदर्शी विचारवान धर्म मर्मज्ञ राजनीति निपुण नारद जैसे लोग भी श्रीकृष्ण की नीतियों को नहीं समझ सके। यही हाल इस प्रबंध-काव्य को लिखे जाने के दौरान देश में गाँधी की नीतियों का था। देश की राजनीतिक विचारधारा में क्षोभ एवं रोष की भावना खिलाफत पंजाब प्रवासी भारतवासी आदि दोनों संगठनों के नेताओं में समान रूप से व्याप्त थी। 'कृष्णायन' महाकाव्य के श्रीकृष्ण और बलराम को कथावाचकजी ने इसी अर्थ में लिया है। भारतीय संस्कृति-सभ्यता पर्व शिक्षा स्त्री महत्व संगठित शक्ति द्वारा अत्याचार का खात्मा तथा एक नेतृत्व में विश्वास 'कृष्णायन' में देखे जा सकते हैं।
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