कुछ आपबीती कुछ जगबीती रचना एक सामान्य व्यक्ति के जीवन संघर्ष की दास्तान है जिसको बेरोजगारी की स्थिति में अपनी पत्नी सहित अपने परिवार में उपेक्षा और अपमान सहना पड़ता है और रोजगार मिल जाने के बाद अपने शहर से सैकड़ों किलोमीटर दूर रहकर तमाम दुश्वारियां झेलते हुए बत्तीस दांतो के बीच जीभ की तरह अपने आपको बचाये रखने के लिये अपने अधिकारियों और सहकर्मियों से जूझना पड़ता है। वर्ष 1972 से 1996 की अवधि में मैने परिवार समाज और अपनी शासकीय सेवा में अपने आस-पास जैसा घटित होता हुआ देखा और महसूस किया है उसको वैसा ही लिखने का प्रयास किया है। किसी की भावना को तकलीफ न पहुँचे इसलिये पात्रों के नाम और स्थान परिवर्तित कर दिये हैं। फिर भी किसी घटना या किसी बात से किसी को कोई ठेस पहुँचती है तो सुधिजन मुझको क्षमा करेंगे ऐसी मैं आशा करता हूँ। अगर किसी एक व्यक्ति को भी मेरी यह रचना अच्छी लगे तो मैं अपने को धन्य समझूंगा। आलोचनाओं का मैं हृदय से स्वागत करूँगमंजिले मिल ही जायेंगी भटक कर ही सही।नादान है वो जो घर से निकलते ही नहीं।~एस.पी. सिंहा।
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