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About The Book
Description
Author
जब तक साहित्य का काम केवल मन-बहलाव का सामान जुटाना केवल लोरियाँ गा-गाकर सुलाना केवल आँसू बहाकर जी हलका करना था तब तक इसके लिए कर्म की आवश्यकता न थी। वह एक दीवाना था जिसका गम दूसरे खाते थे मगर हम साहित्य को केवल मनोरंजन और विलासिता की वस्तु नहीं समझते। हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा जिसमें उच्च चिंतन हो स्वाधीनता का भाव हो सौंदर्य का सार हो सृजन की आत्मा हो जीवन की सचाइयों का प्रकाश हो जो हममें गति और बेचैनी पैदा करे सुलाए नहीं क्यूंकि अब और ज़्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है। प्रेमचंद