Kuch Apni Kuch Jag Ki ( Duniadari)

About The Book

सभी के मन मस्तिष्क में हजारों सवाल एक प्रश्नचिन्ह लिये आते हैं और मुँह बाये आपसे तो कभी अपने आपसे उन सवालोँ का जवाब माँगते हैं। जिनके जवाब हम तुरन्त दे देते हैं यानि जिनके उत्तर से हम खुद सन्तुष्ट हो जाते है तो वो प्रश्न और विचार कुछ समय बाद स्वम् विस्मृत हो जाते हैं। जिन प्रश्नों के उत्तर हम दे नहीं पाते या यूँ कहें की हमे सुझाते नहीं वो हमे कहीं न कहीं उद्देलित करते रहते हैं। परेशान करते रहते हैं। ये सामाजिक मानसिक पारिवारिक अनकहे और अनसुलझे प्रश्न ही कविता हैं जब वो अपने हासिल को पाने के लिये शब्दोँ का सहारा लेकर काग़ज़ पर आ जाती है। इस धरा का प्रत्येक व्यक्ति दो रूप से जीवन जीता है। एक व्यक्तिगत और दूसरा सामाजिक। कोई भी व्यक्ति एकरूपीय हो ही नहीं सकता। जब तक वो व्यक्तिगत जीवन मंथन नहीं करेगा वो सामाजिक हो नहीं सकता।
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