मैं कोई लेखक नहीं हूं । दिल में कभी-कभी कोई संवेदना उठती है तो उसे बस शब्दों में प्रकट कर देता हूं वैसे पेशे से मैंChartered and Cost Accountant हूं और एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ कोरोना की महामारी ने हम सब को अंदर तक झकझोर दिया है और हमारे जीवन मूल्यों और विचारो को काफी हद तक बदलने पर मजबूर कर दिया है जीवन एक संयुक्त घटना है और इसलिए दुःख और सुख भी समाज के ही होते है किसी एक व्यक्ति के नहीं हमें अब अपने व्यक्तिगत नजरिये को सामाजिक और व्यापक करना होगा । तभी हम कोई भी विपदा का मिलकर सामना कर सकते है और इन जीवन की कठिन राहो को थोड़ा सा आसान बना सकते है इन दिनों मुझे भी जीवन को कुछ करीब से देखने का मौका मिली और अपने अंदर उठी संवेदनाओं को मैंने काग़ज पर उतारने की छोटी सी कोशिश की है पुस्तक का शीर्षक कुछ दिल से इसलिए चुना है की मेरा मानना है की दिमाग से हम हर तरह का विकास कर सकते है लेकिन एक दूसरे से जुड़ना है तो कुछ दिल से ही काम लेना पड़ेगा । कुछ दिल से ही निकलेगा हम तक पहुँचने का रास्ता दिमाग से सोचेंगे तो फकत दूरियां ही बढ़ेगी दिल में समा लेंगे कितने भी हो गम उनके माना की कुछ भी नहीं है हम उनके मैं सभी मित्रों और परिचितों का आभार प्रकट करना चाहता है जिन्होंने मुझे समय-समय पर बहुत ही प्रोत्साहित किया है मेरी पत्नी और बच्चों का मैं विशेष आभारी रहूँगा जिनके बिना ये सब संभव ही नहीं था मेरी त्रुटियों को क्षमा करने की कृपा करें आपका सदैव गिरीश
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