Kuch phool aur kuch kaante (कुछ फूल और कुछ कांटे)

About The Book

हर पुरुष जीवन भर कहीं बच्चा ही बना रहता है और हर नारी चाहे बच्ची ही क्यों न हो हमेशा माँ बनी रहती है।नारियों को सम्मानित करने के लिए यह कहना ही पर्याप्त है कि उनका शरीर वह महान मूमि है जो अव्यक्त आत्मा को भौतिक शरीर के माध्यम से व्यक्त करने का महान कार्य सम्मादित करता है।किसी घर में खुशियां बिखेर देना या मनहूसियत फैला देना स्त्रियों के लिए सामान्य सी बात है।हर व्यक्ति में बड़ी से बड़ी कल्पना करने की क्षमता है किन्तु उन कल्पनाओं को साकार करने के लिए पुरुषार्थ बहुत कम व्यक्तियों में होता है।अमानवीय कहे जाने वाले जितने भी कर्म है ये सभी पूरी तरह मानवीय हैं क्योंकि एक मानव ही तथाकथित अमानवीय कार्य करता है।अधिकांश अकर्मण्य व्यक्ति जो एक लक्ष्य विहीन जीवन जी रहे होते है की मानसिक स्थिति उन हिजड़ो की तरह होती है जो जहाँ भी कोई उत्सव होता देखते है वहीं ताली बजाने पहुंच जाते है।जागृत सुषुम्ना में जो प्राण होते है उन्हें आत्रेय कहा जाता है। जिस भी साधक का सम्बन्ध सुषुम्ना स्थित आत्रेय प्राण से हो सका है वही योगी महागुरु दत्तात्रेय की कृपा प्राप्त करने की आशा कर सकता है।
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