कहानियाँ हमें हँसाती हैं रुलाती हैं कभी गुस्सा भी दिलाती हैं और कभी जोश दिलाती हैं। ये हमें हमारी वास्तविक जिंदगी से थोड़ा परे ले जाती हैं। मुझे व्यक्तिगत तौर पर हमेशा यह लगा है कि मेरी कहानियाँ इस तनाव भरे जीवन में और तनाव पैदा करने वाली न हो बल्कि रिलैक्स करने वाली हो। इसीलिए मैंने कभी वर्ग संघर्ष नारी सशक्तीकरण न्याय अन्याय आदि पर कोई ध्यान नहीं दिया है। घटनाएँ हैं घटती चली जाती हैं और घटते-घटते कहानी बना जाती हैं। इनके विश्लेषण का काम पूरी तरह आप पर छोड़ा हुआ है। इसीलिए हल्की-फुल्की कहानियाँ जिनसे हम हँसी-खुशी गुजर जायें मेरी प्राथमिकता रही हैं। इनमें भावों का अतिरेक नहीं मिलेगा। कठिन से कठिन घटना का चित्रण हल्के-फुलके रूप में ही है।
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