एक आमधारणा है कि आत्मकथा में सब कुछ सच ही होता है उसमें झूठ का कोई स्थान नहीं होता है। ऐसे में कुछ सच्ची तो समझ आता है मगर कुछ झूठी से आशय स्पष्ट नहीं होता है। अपने द्वारा अपनी ही ज़िन्दगी को जितना जान-समझ-महसूस कर पाये हैं उसे ही शब्द-रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। सरल शब्द सहज अभिव्यक्ति बोलचाल की भाषा में हमने तो कुछ सच्ची कुछ झूठी आपसे कह दी। अब आप हमारी ज़िन्दगी से कैसे जुड़ते हैं यह आप पर है। हमारी ज़िन्दगी और हम तो आपस में जुड़े ही हैं बहुत कुछ चाहने बहुत कुछ न चाहने के बाद भी।
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