कथाकार प्रेमचंद सिर्फ रचनाकार ही नहीं धारदार चिंतक भी थे। इस पुस्तक में उनके विचारोत्तेजक भाषण लेख का संग्रह है। इसमें साहित्य का उद्देश्य कहानी कला जीवन में साहित्य का स्थान उर्दू हिन्दी और हिन्दूस्तानी तथा राष्ट्र भाषा को लेकर उठी तात्कालिक समस्याओं पर विचारक प्रेमचंद ने अपने जीवनानुभवों के प्रकाश मे विचार प्रकट किये हैं।<br>साहित्य के मर्मज्ञ इसके बहाने प्रेमचंद की साहित्य दृष्टि से सीधे साक्षात्कार कर सकेंगें। अध्येताओं के लिए एक अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं संग्रहणीय पुस्तक....
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