रौपदी की चीरहरण पर भीम की प्रतिज्ञा रोम-रोम झंझना देती है :--- मेरे मन का उद्दाम वेग दर आज समय है रोक रहा । पथ अग्रज का वर है छाना बलवान समय है टोक रहा ।। जिस जंघा पर दे रहा ताल वह जंघा रण में तोड़ूंगा । हंस लो चाहे जितना चाहो अधमरा बना मैं छोड़ूंगा ।। जिन हाथों ने है गहा केश हन उनको तोड़ झटक दूंगा । सीने का गर्म लहू पीकर तन भू पर कोड़ पटक दूंगा ।।
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