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About The Book
Description
Author
वेदान्त के प्रकरण ग्रन्थों में विद्यारण्य स्वामी द्वारा ग्रथित पंचदशी यह सर्व विद्वत् मान्य ग्रन्थ है। इसमें पहले पांच अध्यायों में तत्व का विवेक प्रस्तुत किया गया है। जिसको विवेक पंचकम् श्रृंखला में प्रकाशित किया गया। दूसरे पांच अध्याय माने ६ से लेकर १० तक सच्चिदानन्द इस शब्द के चित् पर विवेचन हुआ है। सभी समस्या का मूल अपनी पहचान में है। हम स्वयं को किस दृष्टि से देखते हैं? क्या हम किसी के सम्बन्धी हैं या हम कोई धनवान या गरीब हैं या हम देह हैं या फिर हम जीव हैं? अब यह इतने सारों में हम कौन हैं? इसका निर्णय करने के लिए कूटस्थ दीप इस अध्याय में श्रुति युक्ति और अनुभूति इसके आधार पर जगत् के अधिष्ठान को ब्रह्म चैतन्य और जीव के अधिष्ठान को कूटस्थ चैतन्य रूप में प्रस्तुत किया है और अन्त में कूटस्थ चैतन्य और ब्रह्मचैतन्य की एकता प्रस्थापित हुई है। दो शब्दों में कहें तो एक ही तत्व पर उपाधियों के भेद के कारण जीव जगत् और ईश्वर ये अध्यारोपित किये हैं। इस अध्यारोप के अपवाद से अपना स्वरूप अनुभूति में प्रकट होता है। यही है कूटस्थ दीप का सौंदर्य । -स्वामी अनुभवानन्द